चिड़िया


एक शाम एक नन्हीं  चिड़िया
आयी मेरे कमरे में


पहले पहल अखरा मुझे उसका आना
लेकिन, फिर नित्य शाम
चिड़िया आने लगी
मन को मेरे भाने लगी


मुँडेर पर रखा मैंने
थोड़ा दाना-पानी


वह सुरीली श्यामा
फुदकती,चहकती
टहलटी,बैठती
कभी पंखे पर
दूसरे क्षण मेरे कंधे पर


देख आईने में रूप
गुनगुनाती अनूप


एकटक देखती
मेज पर रखीं किताबें
दीवार पर लगीं तस्वीरें


चिड़िया रोज मूक विवाद करती
कभी जीत जाती
कभी हार जाती


फिर एक शाम
चिड़िया नहीं आयी


रखा रहा मुँडेर पर दाना-पानी
याद आने लगी 
उसकी कहानी


मैं व्याकुल हो बाट जोहता रहा
अंदर-बाहर उसे टोहता रहा


दौड़ाई नज़र 
पंखें पर,दीवार पर
पेड़ पर,मीनार पर


चारों ओर सूना था
हर चीज़ अकेली थी


चिड़िया का न आना
मेरे लिए एक जटिल पहेली थी


अगली सुबह मैंने देखा
कुछ टूटे रक्तरंजित पंख
बिल्ली के पैरों के निशान


मैं स्तब्ध मौन ताकता रहा
ह्रदय अपराधी-सा भागता रहा


मिल गया मुझे पहेली का हल
चिड़िया दोस्ती तोड़ गयी
मुझे नितांत अकेला छोड़ गयी


उस शाम मैंने खाना नहीं खाया
मैं सोया नहीं
पर! रोया भी नहीं


न छुई किताब
न कलम, न स्याही
बस एक ही बात
बार-बार मेरे मन में आयी


आज चिड़िया नहीं आयी
आज चिड़िया नहीं आयी।


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कवि परिचयः
एसोसिएट प्रोफेसर
हिंदी विभाग
राजधानी कॉलेज
राजागार्डन
दिल्ली - 110015