दुनियादार आदमी

दुनियादार आदमी


रोज तैयार होकर
घर से निकलता है
अपने काम के लिए


साँझ ढलने पर 
जैसे पशु-पक्षी लौटते हैं 
अपने कोटरों और ठीहों पर


वैसे ही घर-वापसी करता है
दुनियादार आदमी


रोज किसी
कर्म-कानन को पार करता है
दुनियादार आदमी


एक दिन
बगैर तैयार हुए ही
बिना बताये किसी को
वह निकल जायेगा घर से
निरावधि की लंबी यात्रा पर


फिर दिन ढले
घर लौटते हुए 
पशु-पक्षियों को देखकर
दो आँखें रास्ता निहारेगी उसका


और जो फिर कभी
जीवन में दोबारा


शायद लौटकर 
आ न सकेगा।


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