गांव से आए हो बताओ
क्या हाल हैं
मेरे गांव के
क्या अब भी वैसा ही है
मेरा गांव।
पगडंडियां
अब भी
लेती होंगी
घने पेड़ों की छांव
जिस पर लड़ते होंगे
ग्वालों के पांव।
आज भी
आती होगी
गांव में
सरसों के फूलों की महक
जब आता होगा
बसंत का झोका
मेरे गांव में ।
अब भी
नवयौवन सा संवर जाता होगा
जब बरसात में
चिड़िया चाहकती हैं और मोर
तानता है छतर ।
अब भी
ऋतुएं
जीवन को संवारने
प्रसारती होंगी पांव
और
थिरक उठते होंगे
मोरो जैसे
युवाओं के पांव ।
बताओ ना
क्या अब भी
वैसा ही है
मेरा गांव ।
या
वह भी हो गया है
ठीक शहर जैसा
बिना सिर
बिना पांव।
मेरा गांव