मुझे
रोक लिया था
कल पीपल के पेड़ ने
और कहा था
देखो मेरी तरफ
मैं वहीं पेड़ हूँ
जिसकी टहनियों पर
लटक कर
तुम इतने बड़े हुए ।
तुम गिरे थे
मेरे तने से
कई बार
चढ़े थे कई बार।
तुम्हारे नन्हें पैरों की
गुदगुदाहट
अभी भी मुझे याद है;
तुम खेला करते थे
कुरांडंडी
तपती दुपहरी में
फिर सोते थे
गहरी नींद
मेरे बदन की छाया में ।
मैं कितना खुश रहता था
तुम्हारे साथ।
ये जो खुद नाम
तुम देख रहे हो
यह तुम्हारे ही खुदे हुए हैं
मैंने इन नामों को
बहुत सहेज कर रखा है
अनायास
पीपल का पेड़ कराहा
और कहने लगा
क्या हो गया है
तुम्हें और तुम्हारे शहर को?
क्यों नहीं तोड़ते
मेरी टहनियां और पत्ते
उन पर क्यों नहीं लटकते
तुम्हारे बच्चे?
सच पूछो तो
मेरा तना
आजकल
बहुत तड़पता है
टहनियां उदास रहती हैं
नन्हे हाथों और पैरों के
कोमल स्पर्श के लिए।
भाई !
कहो ना
अपने बच्चों से
मेरे पास आए
भले ही
ठोक जाएं
अपने नन्हें हाथों से
एक कील
या खोद जाएं
अपना नाम
मेरे बदन पर।
बहुत उदास था
पीपल का पेड़
रुआंसा हो कर
देख रहा था
छत पर लगे
डिस्क एंटीना को
और
कान पर लगे मोबाईल को
मन ही मन
गबुदबुदा रहा था
इसी ने छीनी है
मेरी खुशी
मेरे बच्चे मुझसे।
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लेखक परिचयः
प्रबंधक, भा खा निगम, हनुमानगढ़, राजस्थान,
पेड़ का दुःख, घर व खेजड़ी बुआ आदि कृति,
पर्यावरण व प्रकृति पर लेखन,
वन विस्तार व वृक्ष मित्र सम्मान से सम्मानित।