पेड़-पौध


आदमी भूखा था
पेड-पौधों ने अन्न दिया


आदमी ठंड बरसात में
सिकुडता था कछुआ बनकर


पेड-पौधों ने वस्त्र दिये
तन ढापने को 


आदमी फिरता था
दर-दर 
खानाबदोश बनकर


पेड-पौधों ने
बनाया आशियाना


धीरे-धीरे आदमी
दरख्तों से दरकिनार हो गया और
देखते ही देखते


एक गिद्ध
उसके कंधों पर
सवार हो गया


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कवि परिचयः


एसोसिएट प्रोफेसर
हिंदी विभाग
राजधानी कॉलेज
राजागार्डन
दिल्ली - 110015