सूखे झरने

 


हम भागती हुई जिंदगी से
कुछ समय फुर्सत का चुराते हैं


रोजमर्रा के जरूरी कामों को
बडे अदब से सहेजते-सम्भालते हुए


घर में लगे
पेड-पौधों की उदासी झेलते हैं


और अपने प्रिय-पालतू की
नाराजगी को साथ लेकर
अपने घर को
निपट अकेला छोड


सैकड़ों किलोमीटर दूर
पहाडों से बहते हुए
उन झरनों को देखने जाते हैं


जो हमारी संवेदनाओं में
न जाने
कब के सूख चुके होते हैं।


--------------------------------------------------


कवि परिचयः


एसोसिएट प्रोफेसर
हिंदी विभाग
राजधानी कॉलेज
राजागार्डन
दिल्ली - 110015