स्त्री का सच !
प्रेम के लिए -
पिंजरे में कैद,
पशु की तरह
जंजीर पहन,
कंक्रीट के ढेर को
घर समझ,
स्वर्ग बनाने में जुटी है।
पुरुष ने जाना-
वृक्ष - पुर्ल्लिंग
लता- स्त्रीलिंग
आहा ! ऊपर चढने के लिए मेरा सहारा
लेती है.
सागर-पुल्लिंग
नदी -स्त्रीलिंग
मिलन को हरहराती दौड़ी
आती है।
पुरुष ने क्या यह जाना-
संहार-पुल्लिंग
सृष्टि -स्त्रीलिंग
सृजन की क्षमता वाली,
कभी नहीं डरी
मानव बना रहे पुरुष,
केवल इसलिए -
वो झुकी !!