जल विद्युत् का सूर्यास्त

केंद्र सरकार ने नवीकरणीय उर्जा अथवा रिन्यूएबल एनर्जी को बढ़ावा दिया है। मुख्य कारण है की कोयले से कार्बन डाईऑक्साइड का उत्सर्जन होता है जो ग्लोबल वार्मिंग का कारण बनता है। तेल का हमें आयत करना पड़ता है और वह भी महंगा पड़ता है। परमाणु उर्जा भी हमारे लिए कठिन है क्योंकि रिहायशी इलाकों में इन संयंत्रों को लगाने में खतरा रहता है और हमारे पास इन्हे चलाने के लिए यूरेनियम पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध नहीं है। इन सभी कारणों को देखते हुए सरकार ने सौर उर्जा और जल विद्युत् को बढ़ावा देने का निर्णय किया है। इनके वर्तमान दाम में मौलिक अंतर है। आज नए सौर उर्जा संयंत्रों से बिजली की उत्पादन लागत 2 से 4 रुपया प्रति यूनिट आती है जबकि जल विद्युत् से उत्पादन लागत 7 से 11 रूपये प्रति यूनिट आती है। सौर उर्जा जल विद्युत् की तुलना में बहुत ही सस्ती पड़ती है। लेकिन समस्या है कि सौर उर्जा का उत्पादन दिन के समय होता है जबकि बिजली की अधिक जरूरत सुबह, शाम एवं रात में होती है जिसे पाकिंग पॉवर कहा जाता है। देश की विद्युत् ग्रिड को स्थिर रखने के लिए जरूरी है की सुबह, शाम एवं रात को बिजली का उत्पादन जरूरत के अनुसार बढ़ाया जा सके। जल विद्युत् का विशेष लाभ यह है कि जिस  समय बिजली की मांग बढती है उसी समय हम एकत्रित पानी को छोड़ कर बिजली का उत्पादन कर सकते हैं। इसलिए सरकार ने सस्ती सौर ऊर्जा के साथ-साथ महंगी जल विद्युत् ऊर्जा को भी बढाने का निर्णय लिया है।


लेकिन सुबह, शाम एवं रात को बिजली की जरूरत को पूरा करने के लिए दिन में सौर उर्जा का संग्रहण करके इसे सुबह एवं शाम के समय उपयोग किया जा सकता है। इसका सुलभ उपाय है कि पंप स्टोरेज परियोजना बनायीं जाए। पहाड़ी इलाकों में एक कृत्रिम तालाब नीचे और एक कृत्रिम तालब ऊपर बनाया जा सकता है। दिन के समय जब सौर उर्जा उपलब्ध हो तो नीचे के तालाब से पानी को पंप करके ऊपर के तालाब में डाला जा सकता है। सुबह और शाम जब बिजली की जरूरत हो तो ऊपर के तालाब से पानी छोड़ करके और बिजली बनाते हुए उस पानी को पुनः नीचे के तालाब में लाया जा सकता है। जैसे हलवाई दूध को ऊपर और नीचे फेंटता है उसी प्रकार हम पानी को दिन के समय ऊपर ले जाकर और जरूरत के समय नीचे लाकर अपनी बिजली की जरूरत पूरी कर सकते हैं।


भारत सरकार की संस्था सेंट्रल इलेक्ट्रिसिटी अथॉरिटी के अध्यक्ष के अनुसार दिन की सौर उर्जा को सुबह और शाम को पीकिंग उर्जा में बदलने में केवल 30 से 50 पैसा प्रति यूनिट का खर्च आता है। इस प्रकार यदि हम मानें कि आज सौर उर्जा का उत्पादन का मूल्य 4 रुपया है तो इसे पीकिंग पॉवर में 4.50 रूपये में उपलब्ध कराया जा सकता है जबकि वही पीकिंग पॉवर जल विद्युत् से 8 से 11 रूपये प्रति यूनिट में पड़ रही है। इसलिए पीकिंग पॉवर के तर्क के आधार पर जल विद्युत् का समर्थन नहीं किया जा सकता।


सौर उर्जा में दूसरी समस्या बिजली के ग्रिड की स्थिरता का है। पूरे देश की बिजली की व्यवस्था आपस में जुडी हुई है। इस ग्रिड पर हर क्षण जितनी बिजली की जरूरत है उतना ही उत्पादन होना चाहिए जिससे की ग्रिड का वोल्टेज बराबर बना रहे। यदि बिजली का उत्पादन अधिक होता है तो ग्रिड का वोल्टेज बढेगा और यदि बिजली की मांग अधिक होती है तो ग्रिड का वोल्टेज गिरेगा। ग्रिड की स्थिरता को बनाये रखने के लिए जरूरी है की बिजली की मांग और आपूर्ति का संतुलन निरंतर बना रहे। सौर उर्जा से ग्रिड अस्थिर हो जाती है। जैसे यदि बादल आ गए तो सौर उर्जा का उत्पादन एकाएक कम हो जाता है। यदि बादल आ जाते हैं और सौर उर्जा का उत्पादन गिरता है तो बिजली की सप्लाई कम हो जाती है और ग्रिड का वोल्टेज गिरने लगता है इसलिए बिजली इंजिनियर सौर उर्जा को पसंद नहीं करते हैं। लेकिन मैंने पाया कि ग्रिड की अस्थिरता का दूसरा कारण बिजली का व्यापार है। वर्तमान में देश में इंडिया एनर्जी एक्सचेंज नाम से एक बिजली का बाज़ार प्रचलित है। इस एक्सचेंज पर बिजली के उत्पादक एवं खरीददार निरन्तर व्यापार करते रहते हैं। एक्सचेंज में व्यवस्था है कि दिन के 24 घंटों को 15-15 मिनट के 96 भागों में बांटा गया है। बिजली का व्यापार इन 96 हिस्सों में किया जाता है जैसे घरेलु कामवाली अथवा फ़िज़ियोथेरेपिस्ट निर्धारित समय पर आपको सेवा सप्लाई करता है। कोई खरीदार एक्सचेंज पर बुद्धवार को सायं 7:00 से 7:15 के समय अमुक यूनिट बिजली खरीदने का सौदा कर सकता है। इस कारण हर 15 मिनट पर बिजली की आपूर्ति और मांग में परिवर्तन होता रहता है। जैसे बुद्धवार को सायं काल 7:15 बजे नए बिजली के उत्पादक ने अपने संयंत्र चालू करके ग्रिड में बिजली को सप्लाई करना चालू किया और दूसरी तरफ नए खरीदार ने ग्रिड से बिजली को खींचना चालू किया। इस परिवर्तन में जरूरी नहीं की उसी क्षण बिजली की सप्लाई एवं खपत उसी क्षण परिवर्तित हो। अतः हर 15 मिनट पर हमारी ग्रिड अस्थिर वर्तमान में हो ही रही है। सौर उर्जा रहे न रहे, ग्रिड की अस्थिरता हर 15 मिनट पर होने वाले मांग और आपूर्ति में परिवर्तन से होती ही रहेगी। इसलिए सौर उर्जा को ग्रिड की अस्थिरता का मुख्य कारण नहीं बताया जा सकता। बताते चलें की कुछ देशों में 40 प्रतिशत बिजली सौर उर्जा से बन रही है। यदि ग्रिड अस्थिर होती तो ऐसा नहीं हो पाता।


सौर उर्जा में दूसरी समस्या सोलर पैनल से होने वाले प्रदूषण की है। सोलर पैनल के उपयोगी न रह जाने के बाद इसे समाप्त नहीं किया जा सकता। यह बायोडिग्रेडेबल नहीं है। यह प्रकृति में समाता नहीं है। यूरोपीय यूनियन ने इस समस्या के निदान के लिए सोलर पैनल बनाने वालों के लिए अनिवार्य किया है की वे पुराने सोलर पैनल को खरीदकर इनका पुनरुपयोग करेंगे। इससे सोलर बिजली का दाम वर्तमान में 4 रूपये से कुछ बढ़ सकता है लेकिन यह समस्या हलकी जा सकती है।


जल विद्युत् के पक्ष में आखरी तर्क यह है कि हिमांचल प्रदेश जैसे राज्यों द्वारा जल विद्युत् भारी मात्रा में उत्पादित की जा रही है जो की वर्तमान में सस्ती पड़ रही है। यह बात सही है। लेकिन ये संयंत्र आज से 20 से 30 वर्ष पूर्व लगे थे जिस समय इनकी लागत कम  थी और उस समय सौर उर्जा भी बहुत महंगी थी। उस समय सौर उर्जा का दाम  20 रूपये प्रति यूनिट था। आज परिस्तिथि बदल गयी है। वर्तमान में नयी जल विद्युत् परियोजनाओं का दाम बहुत अधिक है। हमें आज की परिस्तिथि में आगे बढ़ना होगा। इन सभी कारणों को देखते हुए समय आ गया है की हम जल विद्युत् को पीछे करें और अपनी नवीकरणीय उर्जा की जरूरत के लिए सौर उर्जा के साथ पंप स्टोरेज परियोजना को बढ़ावा दें।


(लेखकः प्रसिद्ध पर्यावरणविद् व अर्थशास्त्री हैं।)