मैं थार
सूरज की तरह गर्म
और
चांद की तरह नर्म।
मेरे बदन पर
पसरी रेत
केवल रेत नहीं
एक कहानी है।
इस के सान्निध्य में
आकर
ऋषि-मुनियों
शूरवीर और छत्रधारियों ने
हृदय परिवर्तित किए हैं।
यह मेरी रेत के कण का
तेज है
जो माथे पर लग जाने से
आदमी
मर-मिटता है देश पर।
मेरी कहानी
खेजड़े
फोग
बेर आक जानते हैं।
जो
वर्षों से
प्यासे खड़े
अंतस जाप करते हैं।
यह शूरवीर हैं
जो अपनी धरती के लिए
जीते हैं-मरते हैं।
मेरे धोरे
प्यासे जरूर हैं
मगर धैर्यहीन नहीं हैं
उड़ उड़ कर जाते हैं
इनके कण अकाश तक
निश्चय के साथ
कि कभी ले आएंगे बरसते आसमान को
धरती पर उतार कर।
कभी तो
बरसना ही होगा
थार में जमकर
इसलिए मेरे बदन पर खड़े हैं
मेरे जाए हम कर।