बिहार में आ रही बाढ़ के मूल में दो प्राकृतिक परिवर्तन है। पहला यह की बंगाल का हुगली नदी का श्रैत्र भूगर्भीय दृष्टी से ऊपर उठ रहा है जिसके कारण गंगा का पानी जो पूर्व में हुगली के माध्यम से गंगासागर तक जाता था, उसने पूर्व में हुगली को बहना कम कर दिया था। गंगा का पानी बंग्लादेश ज्यादा बहने लगा था।
दूसरा प्राकृतिक परिवर्तन ग्लोबल वार्मिंग यानि धरती के तापमान में वृद्धि का है। इस कारण अपने देश में वर्षा का पेटर्न बदल गया है। पूर्व में वर्षा तीन महीने में धीरे -धीरे गिरा करती थी जिससे अधिक मात्रा में पानी भूगर्भ में रिसता था और नदी में एकाएक अधिक पानी नहीं आता था। अब ग्लोबल वार्मिंग के चलते उतनी ही वर्षा कम दिनों में गिर रही है। जैसे, जो वर्षा ९० दिन में होती थी अब उतना ही पानी मात्र १५ दिन में गिर रहा है। इस कारण वर्षा के समय एकाएक पानी की मात्रा बढ़ जाती है और नदियों की इतनी छमता नहीं है की इस अधिक पानी को वह बहाकर समुद्र तक ले जा सके।
भूगर्भीय उठान से लगभग १०० वर्ष पूर्व हुगली अक्सर सूख जाती थी। गंगा का पानी सुंदरबन की तरफ न जाने से हमारे समुद्र में गंगा की गाद नहीं पहुँचती थी। समुद्र की प्राकृतिक भूख़ होती है। वह गाद चाहता है। जब समुद्र को गंगा से गाद कम मिलना शुरू हुयी तब समुद्र ने सुन्दरवन को काटना चालू कर दिया।
हुगली के सूखने की समस्या से कलकत्ता एवं हल्दिया के बन्दरगाहों पर जहाजों का आना जाना बाधित हो गया। कलकत्ता का सौन्दर्य जाता रहा और वहाँ पीने के पानी की समस्या पैदा होने लगी। इन समस्याओं का हल ढूँढने के लिए सरकार ने फरक्का बराज का निर्माण किया। फरक्का बराज के माध्यम से सरकार ने गंगा के आधे पानी को हुगली में डालने का कार्य किया और आधा पानी बांग्लादेश को पद्मा के माध्यम से जाता रहा। एक विशाल नहर से पानी को फरक्का से ले जाकर हुगली में डाला गया। यह नहर लगभग 40 किलोमीटर लम्बी है। इस नहर में पानी डालने के लिए फरक्का बराज बनाई गयी। इस बराज की ऊँचाई १० मीटर की गयी जिससे की गंगा का पानी नहर में प्रवेश कर सके। ऐसा करने से हुगली में पानी बड़ा है, हुगली पुनर्जीवित हुयी है, कलकत्ता का सोंदर्य बड़ा है और कलकत्ता तक जहाजों का आवागमन होने लगा। लेकिन बराज का एक दुष्परिणाम हुआ। १० मीटर ऊँची बराज बनाने से फरक्का के पीछे लगभग ८० किलोमीटर तक एक विशाल तालाब बन गया। इस तालाब में गंगा के पानी का वेग न्यून हो गया क्योंकि पानी संकरे श्रैत्र में तेज बहता है और जहाँ फैलकर बहता है वहाँ उसका वेग धीमा हो जाता है। गंगा के पानी का वेग कम होने से उसने गाद को इस विशाल तालाब में जमा करना शुरू कर दिया। फलस्वरूप, फरक्का के पीछे के तालाब में का पेटा ऊँचा होता जा रहा है। गंगा के पानी को ले जाने की क्षमता उसी अनुपात में कम होती जा रही है जैसे एक थाली और भगोने में पानी के स्वरूप का अंतर होता है। पहले फरक्का के ऊपर गंगा का स्वरूप भगोने जैसा था तो अब वह थाली जैसा हो गया है।
आईआईटी कानपुर के प्रोफेसर राजीव सिन्हा ने बिहार सरकार के आग्रह पर फरक्का का अध्यन किया। उन्होंने पाया कि फरक्का के तालाब में गाद जमा हो रही है लेकिन वह दिख नहीं रही है क्योंकि वह अधिकतर समय डूबी रहती है। लेकिन इस गाद के जमा होने से गंगा के पानी को वहन करने की छमता कम हो गयी है। गंगा का पानी फ़ैलने लगा है और अगल बगल के मालदा जैसे क्षैत्रों को काटने लगा है जिसके कारण वहाँ बाढ़ का तांडव बढ़ गया है।
गाद के फरक्का बराज के तालाब में जमा होने से दूसरा प्रभाव सुंदरबन पर पड़ा। जैसा ऊपर बताया गया है पहले गंगा का पानी गाद समेत सुंदरबन तक पहुंचता था और समुद्र को तृप्त करता था। फरक्का के तालाब में गाद नीचे बैठती है और बराज के नीचे से गेट से इस गाद समेत पानी को बांग्लादेश को भेजा जा रहा है। फरक्का के तालाब में ऊपरी स्तर पर गाद की मात्रा कम होती है और यह हल्का पानी नहर के माध्यम से हूगली को और इसके आगे सुंदरबन को भेजा जा रहा है। यद्यपि भारत और बंग्लादेश में पानी का बंटवारा आधा आधा हो रहा है लेकिन गाद ८० प्रतिशत बांग्लादेश को और २० प्रतिशत भारत को जा रही है ऐसा मेरा अनुमान है। गाद के इस असंतुलन का बांग्लादेश और सुंदरबन दोनों पर दुश्प्रभाव पढ़ रहा है। बांग्लादेश में गाद ज्यादा पहुंचने से उसका जमाव हो रहा है और बाढ़ का प्रकोप बढ़ रहा है जबकि सुंदरबन में गाद के न पहुंचने से समुद्र द्वारा कटान अधिक हो रहा है।
इस परिस्तिथि में हमें फरक्का बराज के आकार में परिवर्तन करने पर विचार करना चाहिए। सुझाव है कि बांग्लादेश की सरहद के पहले जहाँ गंगा से पुरानी हुगली नदी निकलती थी यानी मोहम्मदपुर में वहाँ पर अंडरस्लूस लगा कर पानी को भागीरथी में भेजा जाय। अंडरस्लूस से एक लोहे के गेट को ऊँचा करके पानी को वांछित दिशा में धकेला जाता है। इसके विपरीत फरक्का बराज में तालाब के माध्यम से ऊपर और नीचे अलग अलग पानी का वितरण होता है। अंडरस्लूस में नीचे से गेट आने से गाद का वितरण बांग्लादेश और भारत के बीच बराबर होगा। यदि अंडरस्लूस उठा कर हमने ५० प्रतिशत पानी को हुगली में डाला तो ५० प्रतिशत गाद भी हुगली में आयगी क्योंकि अंडरस्लूस के पीछे तालाब नहीं होता है। ऐसा करने से बांग्लादेश और सुंदरबन दोनों की समस्या हल हो जायगी। बांग्लादेश को जो अधिक गाद मिल रही है वह मिलना बंद हो जायगी और वहां बाढ़ कम हो जाएगी जबकि सुन्दरवन को जो कम गाद मिल रही है वह अधिक मिलना शुरू हो जायगी और जो कटाव हो रहा है वह बंद हो जायेगा। साथ-साथ वर्तमान में जो फरक्का के पीछे ८० किलोमीटर का तालाब बना है वह तालाब समाप्त हो जायगा और बिहार में बाढ़ का तांडव समाप्त हो जायगा। गंगा की ग्लोबल वार्मिंग के चलते तेज आने वाली बरसात के पानी को समुद्र तक पहुँचाने की क्षमता बनी रहेगी क्योंकि फरक्का बराज का अवरोध समाप्त हो जायगा। केंद्र सरकार को और विशेषकर बिहार सरकार को फरक्का बराज के आकार के परिवर्तन पर विचार करना चाहिये। इस कार्य में बिहार सरकार की अहम् भूमिका है क्योंकि फरक्का से आने वाली बाढ़ की प्रमुख समस्या बिहार की ही है।
(लेखक - प्रसिद्ध पर्यावरणविद् हैं)