बचपन में सुनता था
गाँव से दूर
पूरब के बूढ़े तालाब में
जब गर्मियों में खिलते
ढेरों कमल के फूल,
रात को
महुए के पेड़ के नीचे
जगमग रहती,
नानी बताती
नाचते हैं प्रेत।
तालाब अब तो
सूखा ही रहता है
साल के ज़्यादातर महीने,
महुए का पेंड़ भी
अब नहीं रहा
नानी की तरह,
सुना है
प्रेत अब रहने लगे हैं
बस्ती में।
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कवि परिचयः
भारतीय राजस्व सेवा में बरेली में कार्यरत्
कविता संग्रह - कविता के बहाने।
निवासः 402/T-5 सिविटेक फ्लोरेंसिया,
रामप्रस्थ ग्रीन्स, वैशाली,गाज़ियाबाद 201010