मैं छायादार
एक घना वृक्ष
बीच चौराहे
ऐसे ही
नहीं खड़ा हूँ
मैंने बरसो
रुत का मिजाज
सहा है।
रुत ने
मुझे रुलाया नहीं
कभी उजड़ा नहीं।
तभी तो
इतना बुलन्द खड़ा हूँ
लेकिन
जब शहर बसा
लोगों का मिज़ाज बिगड़ा
किसी कहाँ चिंता
कही एक पेड़ उजड़ा ।
कवि परिचयः
प्रबंधक, भा खा निगम, हनुमानगढ़, राजस्थान,
पेड़ का दुःख, घर व खेजड़ी बुआ आदि कृति,
पर्यावरण व प्रकृति पर लेखन,
वन विस्तार व वृक्ष मित्र सम्मान से सम्मानित।