यहां पीएम आए, न आए पेड़ नहीं कटेगा

कोई 1987 की बात होगी, जून का ही महीना। वृंदावन में यमुना पार देवरहा बाबा का डेरा जमा हुआ था। अधिकारियों में अफरातफरी मची हुई थी। प्रधानमंत्री राजीव गांधी को बाबा के दर्शन करने आना था। प्रधानमंत्री के आगमन और यात्रा के लिए इलाके की मर्किंग कर ली गई। आला अफसरों ने हैलीपैड बनाने के लिए वहां लगे एक बबूल के पेड़ की डाल काटने के निर्देश दिए । भनक लगते ही साधु ने एक बड़े पुलिस अफसर को बुलाया और पूछा कि पेड़ को क्यों काटना चाहते हो? अफसर ने कहा , प्रधानमंत्री की सुरक्षा के लिए जरूरी है। बाबा बोले, तुम यहां अपने पीएम को लाओगे, उनकी प्रशंसा पाओगे। पीएम का नाम भी होगा कि वह साधु संतों के पास जाता है। लेकिन इसका दंड तो बेचारे पेड़ को भुगतना पड़ेगा। वह मुझसे इस बारे में पूछेगा तो मैं उसे क्या जवाब दूंगा। नही! यह पेड़ नहीं काटा जाएगा। अफसरों ने अपनी मजबूरी बताई कि दिल्ली से आए अफसरों ने फैसला लिया है। इसलिए इसे काटा ही जाएगा। और फिर एक पेड़ तो नहीं कटना है, इसकी टहनी ही काटी जानी है। मगर बाबा जरा भी राजी नहीं हुए। उन्होंने कहा, यह पेड़ होगा तुम्हारी निगाह में । मेरा तो सबसे पुराना साथी है। दिन रात मुझसे बतियाता है। यह पेड़ नहीं कट सकता। उधर अफसरों की दुविधा बढती जा रही थी। आखिर बाबा ने ही उन्हें तसल्ली दी। कहा, घबड़ा मत, अब पीएम का कार्यक्रम टल जाएगा। तुम्हारे पीएम का कार्यक्रम कैंसिल करा देता हूं। आश्चर्य कि दो घंटे बाद ही पीएम आफिस से रेडियोग्राम आ गया कि प्रोग्राम स्थगित हो गया है। कुछ हफ्तों बाद राजीव गांधी वहां आए लेकिन पेड़ नहीं कटा।


सिद्धियों, योग के बल पर उम्र को अपने वश में करने के लिए विख्यात देवरहा बाबा के बारे में इस तरह की कितनी घटनाएं लोगों की जुबान पर हैं। ढाई सौ से पांच सौ वर्ष के बीच की कोई संख्या उनके जीवन वर्षों के रूप में बताई जाती है। इस बारे में कई लोग संदेह भी व्यक्त करते हैं। लेकिन लंबी उम्र होना कोई अनोखी बात नहीं है। न्यूयार्क के सुपर सेंचुरियन क्लब द्वारा जुटाए गए आकड़ों के अनुसार पिछले दो हजार सालों में चार सौ से ज्यादा लोग एक सौ बीस से तीन सौ चालीस वर्ष तक जिए हैं। यह जानकारी जांची परखी हुई है। इस सूची मे भारत से देवरहा बाबा के अलावा तैलंग स्वामी का नाम भी है। देवरहा बाबा के जन्म वर्ष का पता नहीं है। लेकिन कहते हैं कि भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद ने बचपन में उन्हें देखा था। यह कम से कम नब्बे साल पुरानी बात है।


बाबा कब सिद्ध पुरुष हो गए, यह किसी ने नहीं जाना। लेकिन उनके दर्शन के लिए लोग उमड़ते थे। सरल और सादे जीवन को व्यतीत करने वाले बाबा तड़के उठते, चहचहाती पक्षियों से बातें करते, फिर स्नान के लिए यमुना की ओर निकल जाते। फिर लंबे संमय के लिए ईश्वर में लीन हो जाते। लोग बस यही कहते रहे अजब था पूरी जिंदगी नदी किनारे एक मचान पर ही काट दी। उन्हें या तो बारह फुट ऊंचे मचान में देखा जाता था। या फिर वह वह नदी के बहते जल में खड़े होकर ध्यान आदि करते थे। आठ महीना मइल में, कुछ दिन बनारस में, माघ के अवसर पर प्रयाग में , फागुन में मथुरा में और कुछ समय हिमालय में रहते थे। बाबा के भक्त कहते हैं कि बच्चों की तरह भोला दिल था उनका। कुछ खाते पीते नहीं थे, उनके पास जो कुछ आता उसे दोनों हाथ लोगों में ही बरसा देते। वह दयावान थे। सबको आशीर्वाद दिया। कहते हैं कि बाबा के पास दिव्यदृष्टि थी। उनकी नजर गहरी थी, आवाज में भारीपन था।


बाबा बहुत कम बोलते थे। लेकिन उनसे कोई मार्गदर्शन करने के लिए कहता तो वे बेधड़क अपनी बात कहते थे। बाबा ने निजी मसलों के अलावा सामाजिक और धार्मिक मामलों को भी छुआ। वह कहते थे कि जब गो हत्या के कलंक को पूरी तरह नहीं मिटा सकते, भारतीय समृद्ध नहीं हो सकते। यह भूमि गोपूजा के लिए है। गोपूजा हमारी परंपरा में है।
बाबा की सिद्धियों के बारे में हर तरफ खूब चर्चा होती थी। कहते हैं कि जार्ज पंचम जब भारत आए थे तो उनसे मिले थे। जार्ज को कभी उनके भाई ने उन्हें बताया था कि भारत में सिद्ध योगी पुरुष रहते हैं। तब उन्हें बताया गया था कि किसी और से मिलो ना मिलो देवरिया जिले में दियरा इलाके में मइल गांव जाकर देवरहा बाबा से जरूर मिलना। भारत के प्रथम राष्ट्रपति राजेद्र प्रसाद को बचपन में जब उनकी मां बाबा के पास ले गई तो उन्होंने कह दिया था कि इस बच्चा बहुत ऊंची कुर्सी पर बैठेगा। बाद में राष्ट्रपति बनने पर डॉ राजेंद्र प्रसाद ने बाबा को एक पत्र लिखकर कृतज्ञता जताई थी।


बाबा की शरण में आने वाले कई लोग थे। कई विशिष्ट लोग थे। उनके भक्तों में जवाहर लाल नेहरू, लाल बहादुर शास्त्री , इंदिरा गांधी जैसे चर्चित नेताओं उनके पास आते थे। उनके पास लोग हठयोग सीखने भी जाते थे। सुपात्र देखकर वह हठयोग की दसों मुद्राओं को सिखाते थे। वह योग विद्या पर उनका गहन ज्ञान था। ध्यान, योग, प्राणायाम, त्राटक समाधि आदि पर वह गूढ़ विवेचना करते थे। कई बड़े सिद्ध सम्मेलनों में उन्हें बुलाया जाता तो वह इन विषयों पर अपनी वाक् प्रतिभा से सबको चकित कर देते। लोग यही सोचते कि इस बाबा ने इतना सब कब जान लिया। ध्यान प्रणायाम, समाधि की पद्धतियों के वह सिद्ध थे। धर्माचार्य, पंडित , तत्वज्ञानी, वेदांती उनसे कई तरह के संवाद करते थे। उन्होंने जीवन में लंबी लंबी साधनाएं की।


1990 में योगिनी एकादशी का दिन था। घनघोर बादल छाए थे। उस दिन शाम को बाबा ने इह लीला का संवरण किया। बाबा ब्रह्मलीन हो गए थे। उन्हें मचान के पास ही यमुना की धारा में जल समाधि दी गई। दो दिन तक उनके शरीर को यमुना किनारे भक्तों के दर्शन के लिए रखा गया। बाबा के ब्रह्मलीन होने की खबर देश -देशांतर में फैल गई। हजारों लोग उन्हें विदा देने के लिए उमड़ पड़े। उन दिनों संचार और संपर्क के साधन आज की तरह सुलभ नहीं थे। फिर भी भारत के अलावा यूरोपीय देशों से भी श्रद्धालु आए। कुछ विज्ञानियों ने उनके दीर्घ जीवन के रहस्य जांचने की कोशिश की पर विछोह और व्यथा के उस माहौल में यह कहां संभव था। उम्र और सिद्धि के बारे में देवरहा बाबा ने कभी कोई दावा या खंडन नहीं किया। लेकिन उनके इर्द-गिर्द हर तरह के लोगों की भीड़ हमेशा देखी गई। अत्यंत सहज, सरल और सुलभ बाबा के सानिध्य में जैसे वृक्ष, वनस्पति भी अपने को आश्वस्त अनुभव करते रहे।