हम सभी जानते हैं कि सूर्य और उनकी बहन छठी मइया को समर्पित यह उत्सव उत्तर-पूर्वी भारत के पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार झारखंड आदि एवं नेपाल की तराई क्षेत्रों में बनाया जाता है।
यह उत्सव पूर्णतः पर्यावरण अनुकूल है इस छठ पूजा की पूजन प्रक्रिया के अन्तर्गत किसी भी प्रकार का मूर्ति विसर्जन, पशुबलि या आतिशबाजी नहीं की जाती है। छठ पूजा की पूजन प्रक्रिया के अन्तर्गत भक्त को किसी स्वच्छ नदी,तालाब,झील आदि में स्नान कर सूर्य भगवान को अर्घ्य देना होता है साथ ही अपनी क्षमतानुसार किसी स्वच्छ नदी, तालाब या झील आदि में खड़े हो पूजा भी करनी होती है।
यही कारण है कि छठ पूजा के चार दिवसीय उत्सव की तैयारी में उत्तर भारत के लगभग सभी राज्यों की सरकारें स्वच्छ नदी तालाबों की वैकल्पिक व्यवस्था में जुट जाती हैं जो किसी वास्तविक नदी, तालाब के उद्धार के बजाय उनके घाट आदि की सफाई और सौंदर्यकरण की खानापूर्ति पर जाकर समाप्त हो जाती है। हम सभी हिंदू धर्म के अनुयायियों को एक बात अच्छी तरह समझ लेनी चाहिए कि पर्यावरण की शुद्धी के बिना हमारा द्वारा किया गया किसी भी प्रकार का व्रत, तप, पूजा आदि सब व्यर्थ और निर्थक है।
हमे चाहें किसी भी क्षेत्र,भाषा, या पंथ का अनुसरण करने वाले हो, अपने द्वारा किए गये व्रत तप और पूजा का अधिक से अधिक लाभ उठाना है तो हमें अपनी नदियों,तालाबों आदि सभी प्रकृति के घटकों को मान-सम्मान के साथ शुद्ध रखना होगा। यही महत्वपूर्ण संदेश हमारे सभी प्राचीन ऋषियों, अवतारों और महामानवों ने विभिन्न शास्त्रों और लीलाओं के माध्यम से बार-2 हमसे कहा है।
मिले सुर मेरा तुम्हारा तो सुर बने हमारा - यह गीत हम सभी अपने बचपन से सुनते आ रहे हैं । अगर इस प्रदूषण से हमें जीतना है तो हमें भी अपना सुर प्रकृति के सुर से मिलाकर एक सुर बनाना होगा।
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