एक प्यासा कौवा


एक कौवा प्यासा था


पानी की लालसा में


इधर-उधर उड़ा


और देर तक उड़ता रहा


पर पानी कहीं नहीं मिला


फिर बैठ गया


एक पेड़ पर


थका-मांदा हारा


क्या न करता बेचारा


प्यास लगी थी गहरी


हिम्मत करके कौवे ने


फिर से उड़ान भरी


इस चाह में


शायद किसी राह में


पानी जाये कहीं चमक


उड़ता रहा देर तलक


लेकिन फिर भी


पानी नहीं मिला


पंखों ने उड़ान भरने से किया मना


ऑखों के सम्मुख


काल दिखने लगा


अचानक


दिख गया एक कुआँ


मन थोड़ा-सा स्थिर हुआ


करीब जाकर जो देखा


कुआँ था एकदम सूखा हुआ


प्यास के चक्रव्यूह में


एक पीड़ित घिर गया


पानी की चाह में


तड़पता हुआ वह


सूखे कुएँ में गिर गया


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कवि परिचयः
एसोसिएट प्रोफेसर
हिंदी विभाग
राजधानी कॉलेज
राजागार्डन
दिल्ली - 110015