तन और मन को
साधने के लिए
योग की शिक्षा है
गुरु भारत के पास.
शुद्ध वायु ,शुद्ध जल
शुद्ध फल, शुद्ध अन्न
सबको हो उपलब्ध
तन स्वस्थ बनता है.
योग साधना हो -
शीतल , शांत जलाशय के पास
शुद्ध वायुमंडल में,
मन तब सधता है.
योग साधना की शिक्षा
देता है -मेरा गुरु भारत!
और साधन बन गई प्रजा,
इस राजसाधना की.
राजयोगी गए, आए
घोड़े अपने अपने छोड़े
भोग बांट कर, रोग बांट कर
योग का शंखनाद किया घर घर.
श्वास घोंटते वायु में
अनुलोम विलोम करें हम,
कल कल बहते जल में,
विषमय आचमन करें हम.
यह कैसा योग यज्ञ है !
अभाव प्राणवायु, शुद्ध सामग्री का.
हां पंडित, गुरु सब-
विशुद्ध रूप से तत्पर हैं !
यह कैसा छल है !
अग्निकुंड बन गया देश,
सूखा, टूटा, ढेर बना-
समिधा सा हर जन है.
केवल समिधा से अग्नि,
प्रज्वलित कैसे करोगे भारत !
कुछ तो सोचो,
जीवंत कैसे रहोगे गुरु भारत ! !