पेड़
उपस्थित है
हमारे जीवन में जैसे
ध्वजवाहक हो खड़ा
रणभूमि में
सबसे आगे।
शरीर को देता
प्राणवायु और
आत्मा को
कविता का संगीत।
हरे हरे पत्तों की
गझिन बुनावट के बीच
चहकती एक दुनियां,
किसी डाल पर
बच रहे निशान
रस्सी के,
अभी अभी उतरे हैं
सपनों के झूले।
अभी अभी बदला है
मौसम और
अभी अभी
सोये हैं
माटी के गीत।
पेड़ों पर नाच रहा
प्रेमरस में बौराया
बसंत
टपक रही हैं महुए से
मद की बूंदे
उषा की किरणों के साथ।
सरसराती हुई
बरसात आती है
पेड़ों पर
मिलन के स्वेद से जैसे
नम हो गयी हो
देह उसकी।
और एक दिन जब
कुम्हला जाएंगे सारे फूल
खाली हो जाएगा
हमारी देह का अमृत चषक,
झर जाएंगे
उम्र के सारे दिन
पत्तों की तरह,
पेंड़
उपस्थित होगा
हमारे साथ
अंतिम यात्रा में भी
समर्पित
साथ जल जाने को ।
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कवि परिचयः
भारतीय राजस्व सेवा में बरेली में कार्यरत्
कविता संग्रह - कविता के बहाने।
निवासः 402/T-5 सिविटेक फ्लोरेंसिया,
रामप्रस्थ ग्रीन्स, वैशाली,गाज़ियाबाद 201010